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स्पर्श--भाग(१)

क्या कहा तुमने ? तुम सेठ रघुवरदयाल की बेटी के संग ब्याह नहीं करोगें,अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते तो मेरे घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है,रामनारायण जी अपने बेटे मधुसुदन से बोले।।
बाबू जी! आप चाहते हैं कि मैं उस आधे दिमाग़ वाली लड़की से ब्याह कर लूँ तो ये कभी नहीं हो सकता,मधुसुदन बोला।।
तुझे ज़रा सी बात क्यों नहीं समझ आती?तू अपनी छोटी से नौकरी में अपनी तीनों बहनों का ब्याह नहीं कर सकता और फिर विभावरी ,रघुवर दयाल जी की इकलौती बेटी है,वो चाहते हैं कि विभावरी से ब्याह करने के बाद तू उनके ही आलीशान बंगलें में रहें, जहां सभी एश-ओ-आराम हैं, रामनारायण जी बोले।।
आप क्यों मुझे जानबूझते भाड़ में झोंकना चाहते हैं,मधुसुदन ने पूछा।।
इतनी दौलत और एश-ओ-आराम तेरे पास खुद चलकर आ रहा है और तू उसे ठोकर मार रहा है,रामनारायण जी बोले।।
लेकिन बाबूजी मैने सुना है कि वो लड़की दिमाग से ठीक नहीं है और ऐसी लड़की से भला मैं कैसे प्यार कर पाऊँगा,आप अपने मतलब के लिए मेरी बलि चढ़ा रहे हैं,मधुसुदन बोला।।
ब्याह उससे कर लें फिर तेरे पास दौलत होगी तो प्यार करने के लिए लड़कियाँ भी मिल जाएगीं,रामनारायण जी बोले।।
ये कैसीं बातें कर रहे हैं आप? लगता है दौलत की पट्टी ने आपकी आँखों को अन्धा कर दिया है ,सही गलत की पहचान नहीं रही आपको,मधुसुदन बोला।।
तभी मधुसुदन की माँ शान्ती भी व वहाँ आ पहुँची और बोली....
बेटा! क्यों अपने बाप से बहस कर रहा है उनकीं बात क्यों नहीं मान लेता?
माँ !तुम भी अपने बेटे का अच्छा नहीं सोच पा रही क्या? मधुसुदन बोला।।
तू तो लड़का है कुछ भी करके तेरी नैया तो पार लग जाएगी लेकिन तेरी बहनों का क्या होगा?तेरी बहनों को अच्छा घर और अच्छा वर मिल जाए इसलिए तो तेरे बाबूजी तुझसे कह रहे हैं कि तू विभावरी से ब्याह कर ले,मधुसुदन की माँ शान्ती बोली।।
तुम मेरी माँ होकर ऐसी बातें करती हो,मधुसुदन चीखा।।
मुझे अपनी बेटियों की भी चिन्ता है ,आजकल बिना दहेज के कोई भी ब्याह नहीं करता और ऊपर से तेरी बहनें इतनी सुन्दर भी तो नहीं है,तू मान क्यों नहीं जाता बेटा! शान्ती बोली।।
लेकिन मैं कैसे किसी को बिना देखें और जाने ब्याह कर लूँ?मधुसुदन बोला।।
तो क्या मैनें तेरी माँ को ब्याह के पहले देखा था ?तो क्या तेरी माँ लूली-लँगड़ी हैं या फिर गूँगी-बहरी निकली,रामनारायण से बोले।।
लेकिन पागल तो नहीं है ना वो और वो लड़की जिससे आप मेरा ब्याह कराने पर तुले हैं,वो तो पागल है,मैं कैसे एक पागल के साथ अपना पूरा जीवन गुजार सकता हूँ,मधुसुदन बोला।।
वो पागल नहीं बस उसमें थोड़ा दिमाग़ कम है,मंदबुद्धी है,रामनारायण जी ने सफाई पेश की।।
कुछ भी हो जाएं मैं तो उससे ब्याह नहीं करने वाला,दुनिया क्या कहेगी मुझको कि रूपयों की खातिर बिक गया एक पागल से ब्याह कर लिया ,मधुसुदन बोला।।
तो तू ब्याह नहीं करेगा? रामनारायण जी ने पूछा।।
नहीं...कभी नहीं,मधुसुदन बोला।।
मैं भी देखता हूँ कि तू ये ब्याह कैसे नहीं करता? आज से मैं भी भूख-हड़ताल पर बैठ जाऊँगा,भला मैं भी देखूँ कि तुझे अपने बाप की कोई कदर है भी या नहीं,रामनारायण जी बोले।।
ये तो नाइन्साफ़ी है बाबू जी! आप ऐसा नहीं कर सकते,मधुसुदन बोला।।
मैं ऐसा ही करूँगा,मैं देखता हूँ कि तू अपनेआप को कितना तीसमारखाँ समझता है,रामनारायण जी बोले।।
आप कुछ भी कर लीजिए मैं उस पागल लड़की से ब्याह करके अपनी जिन्द़गी ख़राब़ करने वाला नहीं और इतना कहकर मधुसुदन बाहर चला गया।।
वो उस रात घर भी ना लौटा अपने किसी दोस्त के यहाँ रात भर सोया रहा और दूसरे दिन जब वो घर लौटा तो उसके बाबूजी सचमुच भूख-हड़ताल पर बैठ चुके थे और भूख प्यास के कारण उनका ब्लडप्रेशर बढ़ चुका था,उनका जी घबरा रहा था,उनकी ऐसी हालत देखकर शान्ती मधुसुदन के पास आकर बोली....
तेरे बाबूजी की हालत देख,उन्हें कुछ हो गया तो तू सबको क्या मुँह दिखाएगा? दुनिया थूकेगी तुझ पर,
और अगर मैने उस पागल से ब्याह कर लिया तो तब भी तो दुनिया थूकेगी मुझ पर,क्यों बाबूजी मुझे इस ब्याह के लिए मजबूर कर रहे हैं? मधुसुदन बोला।।
कर ले ना बेटा ब्याह,तेरी तींन बहने क्वाँरी बैठीं हैं,जरा कुछ उनके बारें में तो सोच,शान्ती बोली।।
और फिर अपने बाबूजी की हालत देखकर मधुसुदन को इस ब्याह के लिए हाँ करनी ही पड़ी....
मधुसुदन के हाँ बोलते ही ब्याह की तैयारियांँ होने लगी और सारे शहर को ख़बर हो गई कि मधुसुदन रघुवरदयाल जी की बिन माँ की मंदबुद्धि बच्ची से ब्याह कर रहा है,मधुसुदन को इस ब्याह में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए ना तो वो लड़की देखने गया और ना ही सगाई की रस्म हुई ,बात सीधी शादी तक जा पहुँची,अब वो अपने आँफिस जाता तो लोग कानाफूसी करते हुए कहते....
हाँ! भइया! सब पैसों की माया है,यहाँ तो पैसों के लिए लोग इतना गिर जाते हैं कि पागल तक को अपना जीवनसाथी बना लेते हैं।।
ना जाने भाई इस दुनिया को क्या हो गया है? लगता है सोचने समझने की शक्ति ही चली गई है।।
ये सब बातें सुनकर मधुसुदन का दिमाग खराब हो जाता, घर आता तो पड़ोसी भी यही कानाफूसी करने लगते कि अब अरबपति बनने वाला है मधुसुदन एक पागल से शादी करके....
ये सब बातें सुनकर मधुसुदन के गुस्से की सीमा ना रहती....
फिर धीरे धीरे करके दिन बीत ही गए और मधुसुदन की शादी का दिन आ ही पहुँचा....
गैर मन से तैयार होकर मधुसुदन घोड़ी चढ़ा और बारात रघुवरदयाल जी के आलीशान बंगले पर जा पहुँची,बरातियों की खातिरदारी बिल्कुल शाही अन्द़ाज में हुई ,महंगे उपहार और अच्छा खाना खाकर बाराती खुश हो गए लेकिन दूल्हे मियाँ का मुँह तो अभी भी फूला था औ फिर फेरों के लिए दुल्हन मण्डप में आई,दुल्हन की खूबसूरती देखकर एक पल को सभी बाराती स्तब्ध रह गए,ऐसा रूप-लावण्य किसी ने कभी नहीं देखा था,लेकिन मधुसुदन को अभी भी कोई फरक नहीं पड़ा था....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....


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